Wednesday, July 30, 2014

DRONE JOURNALISM - INDIA

DRONE JOURNALISM -  INDIA
भारत में ड्रोन की दस्तक    
- डा. सचिन बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षक, पत्रकारिता एवं जनसंचार
अब तक हमारे देश में सरहदों की सुरक्षा और निगरानी के लिए ही ड्रोन का उपयोग किया जाता रहा है। लेकिन अब सेना के बाद पुलिस-प्रशासन भी ड्रोन को निगरानी के लिए प्रयोग में ला रहे हैं। हाल ही में सहारनपुर में हुए सामूहिक संघर्ष के बाद रविवार को पुलिस प्रशासन ने अनमैन्ड एरियल व्हीकल यानि कैमरे वाले ड्रोन की सहायता से तंग गलियों का जायज़ा लिया। उन्होंने ड्रोन की मदद से ऐसे क्षेत्रों की निगरानी की जहां पुलिस की गाडि़यां नहीं पहुंच सकती थी। उनका मक्सद यह था कि जहां पुलिस की गाडि़यां नहीं जा सकती या घात लगाकर हमले का खतरा हो, वहां जोखिम उठाए बगैर किसी मुआयना किया जा सके। खैर, उत्तर प्रदेश में पुलिस और प्रशासन ने इसे प्रायोगिक तौर पर इस्तेमाल करते हुए निगरानी यंत्रों के इस्तेमाल में अपनी पहल दर्ज कर दी है। लेकिन विश्व के कई देश, सेना के अलावा ड्रोन को मौसम की जानकारी, प्राकृतिक आपदाओं के समय राहत कार्य करने, आगजनी की घटनाओं में बचाव कार्य करने और भौगोलिक परिवर्तन के अध्ययन में इस्तेमाल कर रहे है। ड्रोन के अपने फायदे हैं और इसीलिए दुनियां भर में इस यंत्र के उपयोग में तेज़ी आई है। खास बात यह है कि यह निगरानी यंत्र हैलीकाॅप्टर के मुकाबले सस्ता है। विदेशी बाज़ार में इसकी कीमत 350 डाॅलर से शुरू होती है और उन्नत ड्रोन चार से पांच हज़ार डाॅलर में खरीदा जा सकता है।
भारत में पहला ड्रोन-
हमारे देश में भी ड्रोन को रिपोर्टिंग के लिए आजमाया जा चुका है। यूनिवर्सिटी आॅफ नेब्रास्का लिनकाॅलिनस की ड्रोन जर्नलिज्म लैब के शोधकर्ता बेन क्रीमर ने अपने डीजेआई फैंटम क्वाडकाॅप्टर यानि ड्रोन के जरिए पहली बार गुजरात के बडौदा जिले में खेलों की वीडियाग्राफी की और फोटो खींची। खास बात यह रही कि बेन ने बड़ौदा ओपन साॅकर मैच में खींची गई अपनी तसवीरों को टाईम्स आॅफ इंडिया को उपहार में दे दिया। अपने आपमें इस अनूठे प्रयास को टाईम्स आॅफ इंडिया ने संपूर्ण पृष्ठ पर प्रकाशित करते हुए बेन को इसका श्रेय दिया, यही नहीं उसमें बेन के साथ-साथ फोटो खींचने वाले ड्रोन को भी इन्सेट में दिखाया गया।
हालांकि विदेश में कई विश्वविद्यालय आज ड्रोन के जरिए अपनी एरियल फिल्म और प्रचार सामग्री बना रहे हैं। लेकिन बेन ने अपने भारत दौरे के समय बड़ौदा की एमएस यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के सहयोग से यूनिवर्सिटी की एरियल फोटोग्राफी और वीडियाग्राफी कर एक प्रचार फिल्म बनाई। वहां ड्रोन के जरिए यूनिवर्सिटी के भीतर और बाहर के कई ऐसे दृश्य फिल्माए गए जिन्हें बिना हैलीकाॅप्टर की महंगी कीमत चुकाए बिना हासिल नहीं किया जा सकता। ड्रोन के जरिए बनाई गई इस फिल्म को बेन ने गांधीनगर में आयोजित हुए राष्ट्र्रीय शैक्षिक सम्मेलन, वाईब्रंेट गुजरात 2014 में प्रदर्शित किया।
ड्रोन का अर्थ-
डिक्शनरी में दी गई व्याख्या के मुताबिक, वह नर मधुमक्खी जिसमें डंक नही होता, जो शहद का उत्पादन नहीं करते, आलसी होते हैं और काम नहीं करते उन्हें ड्रोन कहा गया है। इस नर मधुमक्खी का काम केवल रानी मधुमक्खी से संबंध बनाना होता है। दूसरी व्याख्या में ड्रोन ऐसे व्यक्ति को बताया गया है व्यक्ति जो आलसी होता है और सभी से अलग रहता है यानि लोफर। तीसरी व्याख्या में अधिक परिश्रम और थकाने वाले काम करने वाले व्यक्ति को ड्रोन कहा गया है और चैथी व्याख्या में चालक यानि पायलट रहित विमान जिसे रेडियो या रिमोट से संचालित या नियंत्रित किया जाता हो उसे ड्रोन बताया गया है। इसके अलावा उक्ता देने वाली या नीरस ध्वनि पैदा करने वाले जीव को भी ड्रोन बताया गया है।
यूएवी यानि अनमैन्ड एरियल व्हीकल
आज के दौर में ड्रोन को आसमान की आंखे कहा जा रहा है। दशकों पहले ड्रोन को चालक रहित विमान कहा गया, जो कि रेडियो तरंगों या मानव द्वारा नियंत्रित किया जाता था। लेकिन आज ड्रोन या तो जमीन पर आॅपरेटर द्वारा नियंत्रित है या जीपीएस सिस्टम से निर्देशित है अलावा इसके कई ड्रोन तो मानव हस्तक्षेप के बगैर भी स्वशासी यानि आॅटोनोमस होकर तयशुदा उड़ान भरने की क्षमता रखते हैं। हालांकि कई ड्रोन प्रोग्राम्ड भी हैं और युद्ध में इस्तेमाल किए जा रहे ड्रोन सेटेलाईट के जरिए मिलने वाले आदेशों की पालना करते हैं। जिन्हें माॅनीटरों की सहायता से एक निगरानी दल संचालित कर निर्देश देता है।

ड्रोन पत्रकारिता या ड्रोनोग्राफी- कैमरायुक्त चालक रहित हवाई विमान जो किसी निपुण संचालक के निर्देशों पर उड़ान भरते हुए दृश्यों को कैद करते हैं। वह दृश्य समाचार संकलन के उद्देश्य के लिए ही इस्तेमाल किए जाते हैं। उसे ड्रोन पत्रकारिता कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि आसमान में उड़ने वाले यंत्र की सहायता से समाचारों का सृजन करना अथवा समाचार बनाने के लिए ही कैमरा युक्त हवाई यंत्र का उपयोग करना ड्रोन पत्रकारिता है। यह तो सामान्य अर्थ है लेकिन अगर गहराई से विश्लेषण किया जाए तो समाचार संकलन के लिए ड्रोन यानि एक यंत्र उपयोग में लाया जा रहा है जो कि मानव नहीं है इसीलिए उसे ड्रोनोग्राफी भी कहा जा रहा है। दरअसल कैमरामैन की फोटोग्राफी और ड्रोनोग्राफी में एक अंतर है। कैमरामैन का कार्य विवेक, विश्लेषण और समय, काल, परिस्थिति के आधार पर बदल जाता है। यानि उसमें मस्तिष्क का नियंत्रण अधिक है और यांत्रिक सीमाएं भी संयमित हैं। लेकिन ड्रोनोग्राफी में यांत्रिक सीमाओं का विस्तार हो जाता है। वह ज़मीन पर कार्यरत होने वाली बाधाओं, निषेधों और वर्जनाओं से मुक्त होता है ऐसे में ड्रोनोग्राफी का आशय यांत्रिक असीमितता से भी लगाया जा सकता है। यह यंत्र हवा में स्वच्छन्द उड़ान के कारण निगरानी, जासूसी और निजता में अवांछित दखलंदाजी जैसे पूर्वागृह या भय का पर्याय भी माना जाता है। 
ड्रोन के प्रकार-
चार पंखों वाला क्वाड्रोकाॅप्टर, पैरट ए आर ड्रोन, कनैडियन ड्रैगन फ्लायर एक्स 8 क्वाड्रोकाॅप्टर, स्टायरोफोम ड्रोन, आईपैड कंट्रोल हैग्जाकाॅप्टर, टाॅरपिडो ड्रोन, पंखा रहित स्पैक्ट्राड्रोन आदि। इसके अलावा कई कंपनियों ने तो मोबाइल के आईपैड और एनराॅयड एप्लीकेशन्स के जरिए नियंत्रित किए जाने वाले ड्रोन भी विकसित कर लिए हैं। एक काॅलेज में प्रायोगिक तौर पर नैनो क्वाड्र्रोटर्स यानि लघु ड्रोन भी बनाए हैं। वहीं कई ड्रोन बैट्री के बजाए गैस से चलाए जा रहे हैं क्योंकि आम तौर पर बैट्री संचालित ड्रोन 15 से 20 मिनट ही उड़ान ले पाते हैं लेकिन गैस संचालित ड्रोन आसमान में अधिक समय तक उड़ने की क्षमता रखते हैं।
सस्ता है ड्रोन -
 विदेशों में अलग-अलग जगह विविध कीमतों पर ड्रोन बेचे जा रहे हैं। आमतौर पर ऐसे ड्रोन कुछ खास स्टोर्स पर उपलब्ध हैं। जिन्हें कोई भी खरीद सकता है। हालांकि कई देशों में उसे उड़ाने पर प्रतिबंध हैं और कहीं-कहीं बेचना भी अपराध है। लेकिन कई कंपनियां इसे खिलौने की श्रेणी में रखते हुए इसका उत्पादन और बिक्री कर रही हैं।
यूनिवर्सिटी आॅफ नेब्रास्का लिनकाॅलिनस की ड्रोन जर्नलिज्म लैब में प्रोफेसर मेट वेइटी के निर्देशन में शोध कर रहे बेन क्रीमर ने अपने रिसर्च में बताया है कि बाजार में उपलब्ध चार पंखों वाले अर्डूकाॅप्टर क्वाॅडकाॅप्टर की कीमत 500 डाॅलर है और उसमें लगे रेडियो कंट्रोलर का मूल्य 60 डाॅलर है। उनका कहना है कि आसमान से तसवीरें खींचने के लिए शुरूआत में गेटविंग एक्स 100 जैसे विमानों को इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन कैमरे में कम्पन्न की वजह से दृश्य हिलने की परेशानी आती थी जो आज के दौर में समाप्त हो गई है। उनका कहना है कि बाजार में स्पायहाॅक एफपीवी जैसे हल्के ड्रोन भी 5 मेघापिक्सल कैमरे के साथ 335 डाॅलर में उपलब्ध हैं। इसके अलावा एयररोबोटिक्स 3 हजार डाॅलर कीमत में बेचे जाते रहे हैं। उन्होंने अपने शोध में बताया है कि ड्रोन को विकसित करते समय एक कंपनी ने 6 पंखों वाला माइक्रोकाॅप्टर बाजार में जारी किया था जिसमें फोटो खींचने वाला प्रोफेश्नल कैमरा लगा था और इसकी कीमत 4300 डाॅलर रखी गई थी।
बेन क्रीमर अपने शोध में बताते है कि 1 किलो प्लेलोड का अर्डूकाॅप्टर हैग्जाकाॅप्टर 900 डाॅलर कीमत में प्राप्त किया जा सकता है, जबकि अर्डूपाॅयलट मेघा 2 फ्लाईट नियंत्रक की कीमत 200 डाॅलर आती है। यही नहीं 2 किलो प्लेलोड एक्स 8 फ्लाईविंग 200 डाॅलर के मूल्य पर मिलता है। और टाॅरपिडो ड्रोन की कीमत 65 हज़ार डाॅलर बताई जाती है। इसी प्रकार एक अन्य कंपनी आरपी फ्लाईट सिस्टम्स भी स्पैक्ट्रा ड्रोन का उत्पादन करती है जिसमें घूमने वाले पंखे नहीं होते हैं। यही नहंी आज के दौर में कई ड्रोन निर्माताओं ने तो मक्खियों के आकार के ड्रोन भी विकसित कर लिए हैं। अलावा इसके कई ड्रोन को मोबाइल की एनराॅयड एप्लीकेशन्स से भी उड़ाया जा सकता है।
कई देशों में पैरट ए आर ड्रोन स्थानीय दुकानों पर 350 से 399 डाॅलर की कीमत चुकाकर प्राप्त किया जा सकता है। जो 30 से 50 मीटर तक उड़ान भर सकता है। खास बात यह है कि इसमें लगे 2 कैमरे आपके स्मार्टफोन से संपर्क रखते हैं और आपको मोबाइल पर दृश्य भेजते हैं। हालांकि पैरट कंपनी कभी भी बेचे गए ड्रोन के आंकड़े सार्वजनिक नहीं करती लेकिन एक प्रेस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2010 में यह कंपनी 5 लाख से अधिक ड्रोन की बिक्री कर चुकी है।
कनाडा की एक कंपनी अपने निर्मित ड्रोन आॅनलाइन बेचती है। इसके बनाए कनैडियन ड्रैगन फ्लायर एक्स 8 क्वाड्रोकाॅप्टर 30 हजार डाॅलर की कीमत पर बेचे जाते हैं। इस कंपनी के बनाए ड्रोन यानि क्वाड्रोकाॅप्टर पंद्रह मिनट में 800 मीटर की उड़ान भरता है साथ ही इसमें उच्च क्षमता वाले कैमरे लगे होते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जहां तक आपकी आंखे देख सकती हैं, यह ड्रोन वहां तक उड़ सकता है। 
पत्रकारिता के लिए सस्ता विकल्प है ड्रोन-
एक अरसा पहले टीवी चैनल और अखबारों को किसी बड़ी आपदा या किसी बड़े आयोजन को कवर करने के लिए अगर एरियल दृश्यों की आवश्यकता महसूस होती थी तो उसके लिए छोटे विमान यानि हैलीकाॅप्टर किराए पर लेने पड़ते थे। चूंकि यह सुविधा भारी भरकम कीमत चुकाने के बाद ही हासिल होती थी इसीलिए चंद मीडिया संस्थान ही ऐसी महंगी सेवाओं के लिए कई वर्षों में एक बार ही हिम्मत कर पाते थे। इसके अलावा बड़ी परेशानी यह होती है कि हवाईजहाज में कैमरामैन को तैनात करना पड़ता है और विमान 500 फीट ऊंची उड़ान भरता है, दिक्कत यह भी थी कि बनाई गई वीडियो में कम्पन्न और शोर रिकार्ड होता है जो प्रसारण की गुणवत्ता के लिहाज से उपयुक्त नहीं माना जाता। लेकिन आज का ड्रोन एक सस्ता विकल्प है। इसके कई फायदे भी हैं कि आपको भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में खुद जाने की जरूरत भी नहीं है और न ही कवरेज के लिए बड़ी टीम बनाने की जरूरत है। यही नहीं ड्रोन को उड़ाने के लिए पायलट जैसे भारी भरकम प्रशिक्षण की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। कहते हैं कि जैसे एक मोबाइल उपकरण और किसी प्लेस्टेशन जैसे वीडियोगेम को सीखने मंे अधिक समय और श्रम की आवश्यकता नहीं होती वैसे ही ड्रोन को सीखना भी बच्चों के खेलने जैसी ही बात है।

पत्रकारिता बदल सकता है भविष्य का ड्रोन-
19वीं शताद्धी के मध्य में पाॅल रिउटर ने स्टाॅक मार्केट की खबरें भेजने के लिए जर्मनी के आचिन और बेल्जियम के ब्रूसेल्स के बीच कबूतरों का इस्तेमाल किया था और ट टैलीग्राफ ने भी खबरों के आदान-प्रदान के लिए कबूतरों को ही माध्यम बनाया था। लेकिन कोई नहीं जानता था कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के अलगाववादी क्षेत्रों में बतौर हथियार इस्तेमाल किया जाने वाला युद्धक ड्रोन मीडिया और संचार के क्षेत्र में एक क्रांति पैदा कर देगा।
आने वाले समय में ड्रोन पत्रकारिता टीवी चैनल की पूरी तसवीर ही बदलकर रख देगी। हो सकता है कि ड्रोन के साथ कैमरा ही नहीं माइक भी लगा हो और न्यूजरूम से समाचार पढ़ता एंकर चुनाव या रैलियों में बयान देने आए नेताओं से बिना रिपोर्टर ही संपर्क बनाने में कामयाब हो जाए। वहां ड्रोन नेताओं के आगे हवा में ही स्थिर हो जाए और एंकर स्टूडियो से सीधे ही नेता या मंत्री से सवाल-जवाब करने में सक्षम हो जाए। यही नहीं आपात स्थितियों में पत्रकार और पुलिस सभी ड्रोन पर ही आश्रित हो जाएं। कहीं बम फटने की खबर हो, कोई हादसा हो या दुर्गम क्षेत्रों में किसी नेता या मंत्री का दौरा सभी जगह ड्रोन यानि आंखे तैनात हो जाएं। यह वाकई होता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि सबसे पहला कारण कि यह कम खर्चीला है और दूसरा यह कि इसके जरिए मीडिया अनियंत्रित क्षेत्रों या स्थितियों में भी अपनी पहुंच बना सकता है और आसानी से दृश्य हासिल कर सकता है।
राॅयटर्स इन्सटीट्यूट फाॅर स्टडी आॅफ जर्नलिज्म की रिपोर्ट रिमोटली पाॅयलेटेड एयरक्राफ्ट सिस्टम एण्ड जर्नलिज्म: अपाॅच्र्युनिटीज एण्ड चैलेंजेस आॅफ ड्रोन इन न्यूज गैदरिंग के मुताबिक यह तब तक एक ही सामयिक प्रश्न है जब तक यह उड़ने वाले वाहन प्रिंट और वीज्युअल मीडिया के दफ्तरों में खड़े नहीं दिखाई देते।
दरअसल ड्रोन रिपोर्टिंग के लिए एक सस्ता, सटीक और मारक यंत्र है। खास बात यह है कि आम तौर पर शहरों में होने वाले विरोध प्रदर्शनों के दौरान टीवी कैमरामैनों को बड़ी परेशानी आती है। जाहिर है ऐसे में पुलिस तैनात होती है और दृश्य बनाने में खासी मशक्कत करनी पड़ती है। यही नहीं अगर कहीं बाढ़ आ जाए या आग लगी हो या फिर कोई ईमारत दुर्घटनाग्रस्त हो गई हो। तब मीडियाकर्मियों को भी अपनी जान जोखिम पर रखते हुए समाचार संकलन करना पड़ता है। लेकिन ड्रोन पत्रकारिता इन सभी परेशानियों का समाधान मानी जा रही है। क्योंकि अगर आपके पास ड्रोन है तो आपको पुलिस से उलझने की जरूरत नहीं है, न ही अग्निकाण्ड जैसे हादसों में अलग-अलग कोण से दृश्य बनाने में समय और परिश्रम करना होगा यही नहीं बाढ़ जैसी आपदा के दौरान नाव की मदद लेने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। सच तो यह है कि इस प्रकार की आपदाओं और दुर्घटनाओं में ड्रोन की मदद से बेहतर दृश्यों का संकलन किया जा सकता है।

ड्रोन और ड्रोन पत्रकारिता को चुनौतियां-
दरअसल पूरी दुनियां में ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर डर और दहशत का माहोल है। क्योंकि इसका अनियंत्रिक और स्वतंत्र उपयोग किए जाने को लेकर कई विषयों पर बहस और आपत्तियां खड़ी हो जाती हैं। इसमें अनचाही निगरानी, निजता का हनन, मुक्त आकाश में अनियंत्रित विचरण, आसामान से जमीन पर आसानी से देखे जाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र या संरक्षित और प्रतिबंधित क्षेत्र पर आसान पहुंच, नागरिक विमानन प्राधिकरणों द्वारा आसमान क्षेत्र में उड़ान की कानूनी सीमाएं और उनसे जुड़ी लाईसेंसिंग प्रक्रियाएं आदि।
यूएस जैसे देशों में ड्रोन के बिना नाम वाले सिस्टम और व्यावयायिक उपयोग पर प्रतिबंध हैं। यूनिवर्सिटी आॅफ नेब्रास्का में प्रोफेसर मेट वेइटी के मुताबिक यूस में ड्रोन को 400 मीटर से अधिक ऊंचाई पर नहीं उड़ाया जा सकता। यानि ड्रोन वहीं तक उड़ान भर सकता है जहां तक आपकी आंखों से ओझल न हो और वह मानव नियंत्रित होना चाहिए। इसके अतिरिक्त सघन आबादी क्षेत्र, निजी व सरकार नियंत्रित क्षेत्रों के अलावा प्रतिबंधित वायु सीमाओं में ड्रोन पर कानूनी पाबंदियां हैं। लेकिन अब यूएस अथॉरिटीज सिविल ड्रोन का उपयोग सिविल क्षेत्र में करने के लिए विचार कर रही हैं। हाल ही में यूएस कांग्रेस ने ड्रोन के उपयोग पर नरमी दिखाते हुए वहां वायु क्षेत्र का प्रबंधन देखने वाली फेडरल ऐवीएशन एडमिनस्ट्रिेशन यान एफएए को 2015 तक ड्रोन की व्यावसायिक उड़ान के लिए सुलभ नीति बनाकर राष्ट्रीय वायुमार्ग खोलने के आदेश दिए हैं। इस मामले पर प्रोफेसर मेट वेइटी का कहना है कि यह एक सकारात्मक पहल है लेकिन आने वाले कानून और प्रतिबंध क्या होंगे यह कहना बहुत मुश्किल है। गौरतलब है कि एफएए ड्रोन उड़ाने के लिए सर्टिफिकेट आॅफ आॅथराइजेशन जारी करता है और इसके तहत अब तक 1387 सीओए जारी किए जा चुके हैं।
हालांकि यूएस में अब तक ड्रोन की उड़ान पर गतिरोध कायम है लेकिन सीएनएन और जाॅर्जिया टेक्नोलाॅजी रिसर्च इन्स्टीट्यूट के बीच ड्रोन अधिनियम, कानून और उसके व्यावसायिक इस्तेमाल पर प्रतिबंधो और समाचार संकलन में इस्तेमाल किए जाने को लेकर नियम बनाने को लेकर साझा प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। जार्जिया टेक्नाॅलाॅजी रिसर्च इन्स्टीट्यूट के प्रिंसिपल रिसर्च इंजीनियर काईक हेइग्स के मुताबिक- हम सीएनएन के प्रसारण तकनीक विशेषज्ञों के साथ मिलकर यूएवी की तकनीक, संचालन प्रक्रिया की पड़ताल करेंगे और उसके सुरक्षित व प्रभावी इस्तेमाल के शोध परिणाम को यूएस फेडेरल ऐविएशन अथाॅरिटी को सौंप देंगे। इस कोशिश का मक्सद यह है कि ड्रोन के उपयोग के लिए न्यायपूर्ण कानून बनाया जा सके।
इसी प्रकार आस्ट्रेलिया में भी नागरिक उड्डयन प्राधिकरण सीएएसए भी ड्रोन की उड़ान को अपनी निगरानी और नियंत्रण में रखने के लिए ड्रोन आॅपरेटर्स को लाईसेंस जारी कर अधिकृत करता है। इसका मतलब यह है कि अपना ड्रोन उड़ाना मुश्किल है लेकिन उसकी अधिकृत सेवाएं आॅपरेटर्स से ली जा सकती हैं। एक जानकारी के मुताबिक वहां 14 व्यावसायिक आॅपरेटर हैं जो खनन, कृषि और वन संरक्षण के लिए सर्वे व निगरानी का काम करते हैं।
साऊथ अफ्रीका में यूएवी या ड्रोन पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। लेकिन थाॅयलैण्ड में ड्रोन उड़ाए जाने पर अब तक कोई कानून नहीं है। वहां ड्रोन या यूएवी उड़ाना पतंग उड़ाने की ही तरह एक शौंक माना जाता है।
यूके में ड्रोन उड़ाने की अनुमति तो है लेकिन उसके लिए बीएनयूसी-एस जैसी योग्यता का होना जरूरी है यानि ड्रोन उड़ाने का वैद्य प्रशिक्षण और उसका प्रमाण-पत्र जरूरी है। बताया जाता है कि बीबीसी ग्लोबल यूनिट के सीनियर प्रोड्यूसर थाॅमस हन्नेम और उनके सहयोगी औवेएन रिच ने इसकी विधिवत परीक्षा पास की और उन्हें एक तयशुदा समय के लिए ड्रोन उड़ाने और वर्गीकृत जगहों का फिल्मांकन करने का लाईसेंस जारी किया गया।
क्या कहते हैं ड्रोन के समर्थक-
आस्ट्रेलिया के गुएनक्झू स्थित एक्स एयरक्राफ्ट कंपनी के निदेशक जस्टिन गोन्ग के मुताबिक आने वाले समय में ड्रोन हवाई सेवाओं पर अधिकार कर लेगा, खास तौर पर आपात समाचार, बाढ़, भूकम्प और आपदा के आंकलन में इसकी भूमिका तेजी से बढ़ेगी। बताना जरूरी है कि जस्टिन अपने निर्मित ड्रोन के जरिए फाॅइनिक्स टीवी नेटवर्क के लिए समाचार बनाते हैं।
एसोसिएशन आॅफ अनमैन्ड व्हीकल सिस्टम के कार्यकारी निदेशक पैगी मेक्टाविश के मुताबिक उनके संगठन में 200 सदस्य हैं और उन्हें ड्रोन पत्रकारिता की अवधारणा से कोई समस्या नहीं है। लेकिन अक्सर ड्रोन की बात होने पर निजता का प्रश्न खड़ा हो जाता है। इसके जवाब में वे कहते हैं कि गूगल अर्थ जब चाहे आपके घर के पीछे झांक सकता है। यह नया नहीं है, सेटेलाइट के जरिए यह पिछले 20 साल से किया जा रहा है। उसे आरम्भ में असुरक्षित माना जाता था लेकिन अब गोपनीयता बरती जाती है तो वह सुरक्षित भी है और नैतिक भी।
ल्ंदन की सिटी यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म के हैड प्रोफेसर जार्ज ब्राॅक का मानना है कि न्यूजरूम तकनीक के मामले में ड्रोन नई बात नहीं रह गई है। सच तो यह है कि शुरूआत में कानून सख्त होते हैं, हालांकि इससे प्रयोग और शोध मे देरी होती है लेकिन यदि मीडिया ड्रोन का इस्तेमाल करते समय निजता के महत्व का ध्यान रखे और उसे जनता के व्यापक हित में ही इस्तेमाल करे तो कोई परेशानी नहीं है। लेकिन ऐसा न होने पर राजनीतिज्ञ, विधायिकाएं और जज प्रतिबंधों को सोचने लगते हैं।
मई 2014 को टूरीन में हुई वल्र्ड एडिटर फोरम की काॅफ्रेंस के दौरान साऊथ अफ्रीका के डिजीटल मीडिया स्ट्रेटेजिस्ट जस्टिन अरेन्सटीन ने प्रायोगिक तौर पर ड्रोन पत्रकारिता को सीमा और कानून रहित काॅओब्वाॅय की संज्ञा दी। उनका कहना था कि इस तकनीक का इस्तेमाल कर उदाहरण पेश किया जा सकता है कि यह तकनीक जनहित के लिए की जाने वाली पत्रकारिता जैसी फायदेमंद भी है।
स्काइ न्यूज के तकनीकि अधिकारी स्टीव बैनेडिक के मुताबिक ड्रोन के जरिए फिल्माए गए दृश्य आंखों के लिए नए होते हैं क्योंकि हेलीकाॅप्टर उंचाई से दृश्य बनाता है जबकि इसके जरिए पेड़ों के ऊपर और जमीन से फासले पर बनाए जा सकते हैं। 
इसी फोरम में यूनिवर्सिटी आॅफ नेब्रास्का में ड्रोन पत्रकारिता प्रयोगशाला स्थापित करने वाली प्रोफेसर मेट वेइटी ने कहा कि ड्रोन अधिनियम की तैयारी में मीडिया को भी जगह दी जानी चाहिए। ताकि प्रेस के स्वतंत्र अधिकार और बोलने की आज़ादी भी चर्चा में शामिल हो जाए। मेट ने कहा कि अब यह प्रेस पर निर्भर करता है कि वह अपनी आज़ादी को मुद्दा बनाकर विश्वभर में ड्रोन कानून को विकसित करने की पहल करे। उन्हें यह कहना होगा कि हम इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं और सावधानी से सही उपयोग में लाना चाहते हैं। लेकिन सच तो यह है कि दुनियां में ऐसा नहीं हो रहा है। यह भी मानना होगा कि यह यंत्र लोगों को असहज करता है। यह निजता का उल्लंघन कर सकता है और नुक्सान भी पहुंचा सकता है।
आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी स्थित रिउटर्स इन्स्टीट्यूट फाॅर द स्टडी आॅफ जर्नलिज्म की रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले समय में दुनियां में आॅलम्पिक्स जैसे मुख्य आयोजनों में मीडिया अपने ड्रोन के जरिए ही दृश्य संकलन करेगा। रिपोर्ट के मुताबिक वायुक्षेत्र में रिमोटली पाॅयलट एयर सिस्टम आरपीएएस के जरिए आपात सुविधाएं मुहैय्या कराई जाएंगी। 
टोरन्टो में एवरोबोटिक्स कंपनी के मालिक इयान हन्नाह ने ड्रोन पत्रकारिता संस्थान की स्थापना की थी। उनका मानना है कि नियम इस तकनीक के विकास में अवरोधक पैदा कर रहे हैं। उनका कहना है कि ड्रोन कैमरे अब हर हफ्ते सस्ते और इस्तेमाल में आसान होते जा रहे हैं।
समाचारों में ड्रोन-
नवंबर 2011 में एक पाॅलिश एक्टिविस्ट ने वाॅरशाॅओ में हुए एक उग्र प्रदर्शन को फिल्माने के लिए चार पंखों वाले क्वाड्रोकाॅप्टर यानि ड्रोन का इस्तेमाल किया था। इन दृश्यों को उसने आॅनलाइन जारी कर दिया। बर्ड आई व्यू यानि चिडि़या की आंख से देखे जाने वाले ऐसे दृश्यों को समाचारों में जगह दी गई और लोगों के बीच वह नजारे किसी संक्रामण की तरह फैले।
इसी प्रकार एक यूएस एक्टिविस्ट ने अपने यूएवी का इस्तेमाल करते हुए डलास के एक स्थानीय मीट पैकिंग प्लान्ट को दर्शाते हुए उसमें किए जा रहे पर्यावरण उल्लंघंन का फिल्मांकन किया। रिवर आॅफ ब्लड के नाम से बनाई गई इस छोटी फिल्म ने पर्यावरण के साथ किए जा रहे खिलवाड़ और उससे पनप रही परेशानियों के बारे में बताया गया। यह फिल्म काफी चर्चित हुई।
वर्ष 2010 में फ्रेंच पप्पारजी पत्रकारों ने कैमरा लगे प्लेन के जरिए फ्रेंच रिवीएरा में छुट्टियां बिता रही पेरिस हिल्टन की तस्वीरें खींची थी। मीडिया में यह तस्वीरें इसलिए खास थीं क्योंकि उस निजी स्थल पर जाने की पाबंदियां थीं लिहाजा मीडिया ने वायुमार्ग से ही पेरिस को फिल्माया।
वहीं खबर यह भी है कि ड्रोन का उपयोग पत्रकारिता के क्षेत्र में करने को लेकर ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ और ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ पहले से ही अपनी सहमति बना चुके हैं। हालांकि अभी इस रिसर्च के पूरे होने के बाद इस योजना को मंजूरी मिलना बाकी है।
एक समाचार के मुताबिक फिलीपींस में तूफान से मची तबाही के आंकलन में ब्रिटिश फोटोग्राफर लेविस व्हील्ड ने इसका इस्तेमाल करके पत्रकारिता जगत के लिए कई नए रास्ते खोल दिए हैं। इस ड्रोन विमान ने दो शवों को भी पता लगाया था।

वर्ष 2011 में यूएस की फेडरल ऐवीएशन एडमिनस्ट्रिेशन यान एफएए ने स्टायरोफोम यानि ड्रोन उड़ाने पर राॅफेल पिर्कर पर 10 हज़ार यूएस डाॅलर का जुर्माना ठोक दिया था। पिर्कर ने यूनिवर्सिटी आॅफ वर्जीनिया के चारो ओर अपना ड्रोन उड़ाते हुए वहां के मेडिकल स्कूल पर एक फिल्म बनाई थी। पिर्कर जुर्माने की वजह से असहमत थे आखिरकार मामला अदालत में पहुंचा। अदालत में उनके वकील ब्रेन्डेन स्चूलमेन ने एफएए के जुर्माने को चुनौती दी और एफएए किसी प्रकार के उल्लंघन को साबित नहीं कर पाई और मार्च 2014 में पिर्कर केस जीत गए। खास बात यह रही कि इस मामले की चर्चा पूरी दुनियां में की गई। 
ब्राजील के मीडिया ने भी वर्ष 2012 में सरकार विरोधी प्रदर्षन की रिपोर्टिंग ड्रोन की सहायता से की थी। ब्राजील के फोल्हा डी साओ पाॅलो और ग्लोबो मीडिया संस्थानों ने उस प्रदर्शन में अपने रिपोर्टरों को खतरे में डाले बिना प्रदर्शनकारियों और उनके आंदोलन को ड्रोन के जरिए दिखाया।
इसी प्रकार यूके के एक नागरिक लाॅरेन्स क्लिफ्ट ने वर्ष 2013 में एक स्कूल में हुए अग्निकाण्ड के दिल दहलाने वाले नज़ारे अपने क्वाड्रोकाॅप्टर की सहायता से रिकार्ड किए। इन दृश्यों को बीबीसी ने टीवी कार्यक्रम में दिखाया। खास बात यह थी कि उनके ड्रोन में उच्च क्षमता के गो-प्रो कैमरे लगे हुए थे, जिन्हें आम तौर पर खेल की तसवीरें खींचने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
एक घटना टर्की की है जहां मार्च 2013 में शौंकिया तौर पर ड्रोन उड़ाने वाले नागरिक जेंक -बदला हुआ नाम- को पता चला कि सरकार टक्सिम गेज़ी पब्लिक पार्क को ध्वस्त कर वहां व्यावसायिक स्थल बनाने की तैयारी में है। इसपर जेंक ने सोचा कि भविष्य में इस पार्क का वजूद ही मिट जाएगा तो उन्होंने अपने ड्रोन की सहायता से एक लघु फिल्म बनानी शुरू कर दी। जब दृश्य देखे तो नज़ारा चैंकाने वाला था। मौके पर पुलिस महिलाओं और बच्चों पर बल प्रयोग करती दिखाई दी। लिहाजा जेंक ने यह तसवीरें एसयूएएस न्यूज को भेजीं, यही नहीं पुलिस की निर्ममता को बेनकाब करने के लिए उन्होंने अपने ड्रोन में लगे गो-प्रो 3 कैमरे की सहायता से कई दृश्य फिल्माए और उन्हें भी वीमीओ और ट्विटर पर अपलोड किया। जिन्हें सरकारी नियंत्रण वाले टीवी चैनलों के अलावा सभी ने प्रमुखता से प्रसारित किया। जेंक ने विरोध की तस्वीरें बनाना जारी रखा और अपनी पोल खुलती देख 11 जून 2013 को पुलिस ने जेंक के क्वाड्रोकाॅप्टर यानि ड्रोन को ही निशाना बना दिया। ऊंचाई से गिरने पर जेंक के ड्रोन का कैमरा टूट गया और मेमोरी भी मिट गई। उनके ड्रोन की कीमत 700 और उसमें लगे कैमरे की कीमत 400 डाॅलर थी। इस नुकसान के बावजूद जेंक निराश नहीं हुए, उन्होंने 16 जून को अपने दोस्त से ड्रोन उधार लिया और पुलिस हिंसा को रिकार्ड कर अपलोड करना जारी रखा। उनकी बनाई इस वीडियो को दुनियां भर के मीडिया ने समाचारों में इस्तेमाल किया। फाॅक्स टेलिविजन नेटवर्क ने कई बार क्रिकेट मैच का फिल्मांकन ड्रोन के जरिए ही किया।
29 जून 2013 को प्रकाशित एक समाचार के मुताबिक सापा में एक स्वतंत्र पत्रकार एफ सी हम्माम ने पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मण्डेला के हृदय रोग से पीडि़त होने पर प्रीटोरिया हार्ट हाॅस्पिटल के बाहर ड्रोन उड़ाया था। उनके ईलाज के दौरान ड्रोन के इस इस्तेमाल से प्रशासन और मण्डेला के परिवार ने आपत्ति की। इसके बाद हम्माम को गिरफ्तार कर लिया गया। पूछताछ में हम्माम ने कहा कि ड्रोन के जरिए फिल्माए गए दृश्य इतने खूबसूरत थे कि उन्हें लगा कि ऐसे नज़ारे मीडिया और जनता को देखने चाहिएं। आखिरकार हम्माम के माफी मांगने और दृश्य नष्ट करने पर ही उन्हें छोड़ा गया।
वर्ष 2013 के आखिरी महीनों में डेली टेलीग्राफ के फोटोग्राफर लेविस व्हील्ड ने फिलीपीन्स में आए समुद्री तूफान टाइफून हाईयां से हुई त्रासदी को कैमरे में कैद किया था। उन्होंने अपने ड्रोन के जरिए न केवल उजड़े हुए गांवों की असल तसवीर दिखाई बल्कि जीर्ण-क्षीण मकानों के भीतर के हालात का भी जायज़ा लिया। इस एरियल फोटोग्राफी को ब्रिटिश ड्रोन जर्नलिज्म में उनका पहला कदम मील का पत्थर माना जाता है। 
9 फरवरी 2014 को जारी हुए एक समाचार के मुताबिक आस्ट्रेलिया में एबीसी टीवी के पत्रकारों ने वहां की नागरिक उड्डयन प्राधिकरण सीएएसए से अनुमति लेकर कैनबैरा में आयोजित आस्ट्रेलिया दिवस समारोह को अपने यूएवी से फिल्माया। चैनल के पत्रकार मार्क कार्कोरेन ने बताया कि 26 जनवरी को आयोजित इस समारोह की शूटिंग करने के लिए सीएएसए द्वारा स्वीकृत या अधिकृत काॅप्टरकैम कम्पनी के सहयोग से उन्हें यूएवी की सुविधा मिली और कार्यक्रम के दृश्यों को फिल्माया गया। एबीसी के इवेंट प्रोड्यूसर डेविड स्पेंसर के मुताबिक हैलीकाॅप्टर के जरिए की जाने वाली रिकार्डिंग में शोर और हिलते हुए अस्पष्ट दृश्य हमें कभी स्वीकार्य नहीं थे। ऐसे में यूएवी ही ऐसा विकल्प था जिससे हमें मनमुताबिक शाट्स मिल पाए। यूएवी उपलब्ध होने से पहले लाइव ब्राडकाॅस्ट और गुणवत्तापूर्ण दृश्य हमारे लिए एक सपना ही थे।
इसी प्रकार 2 मार्च 2014 को लेटिन अमेरिका में साल्वाडोरन समाचार पत्र ने प्रधानमंत्री चुनावों की रिपोर्टिंग के लिए अल-ड्रोन का इस्तेमाल किया जबकि एक अन्य अखबार ला प्रीन्सा ग्राफिका ने समाचारों के संकलन के लिए डीजेआइ फैन्टम 2 विज़न क्वाॅडकाॅप्टर की सेवाएं ली। इस ड्रोन को हवा में 23 हज़ार फीट की ऊंचाई तक लगातार 25 मिनट उड़ाया गया।
बीबीसी ने उड़ने वाले कैमरे के प्रयोग के लिए एक विशेष दस्ता तैयार किया है। इस दल के मुखिया टाॅम हैनेन हैं। बताया जाता है कि बीबीसी मोटे तौर पर फीचर बनाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करता है। टाॅम हैनेन के मुताबिक उनकी रूचि ड्रोन पत्रकारिता में है इसीलिए उन्होंने एक फोरम बनाया है जिसका नाम है द फ्रंट लाइन क्लब। 
काॅलेजों में ड्रोन पत्रकारिता की दस्तक-
 ड्रोन की सस्ती तकनीक और भविष्य में इसके महत्व को देखते हुए यूनिवर्सिटी आॅफ नेब्रास्का में प्रोफेसर मेट वेइटी ने ड्रोन पत्रकारिता प्रयोगशाला की स्थापना की। प्रोफेसर मेट के मुताबिक बड़ी खबरों की कवरेज के लिए एयरक्राफ्ट या हैलीकाॅप्टर को किराए पर लेना बहुत महंगा पड़ता है, लेकिन ड्रोन एक सस्ता और स्थाई विकल्प है। उनका कहना है कि यूएस में ड्रोन उड़ाने पर कई प्रतिबंध हैं।
लेकिन ऐसा लगता है कि आने वाले समय में ड्रोन पत्रकारिता करता नजर आएगा। दरअसल, सीएनएन ने जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के साथ मिलकर एक रिसर्च प्रोजेक्ट लॉन्च किया है। सीएनएन के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट डेविड विजिलांते के मुताबिक, ‘हमारा मकसद नॉलेज शेयर करने का है, जिसके तहत हम इस प्रोसेस को सीएनएन और अन्य मीडिया ऑर्गेनाइजेशन के लिए भी नई तकनीकी के तौर पर देख सकते हैं। जॉर्जिया इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के शोधकर्ता माइक हैगिस का कहना है कि, ‘हमारे पास बहुत सी ऐप हैं, जिनका प्रयोग रिसर्च और रेस्क्यू, डिजास्टर रेस्पॉन्स समेत एग्रीकल्चरल मैपिंग और क्रॉप असेससमेंट में लाभ उठाने में कर सकते हैं। हम इस सीएनएन के साथ न्यूज एकत्र करने वाली एप्लीकेशंस पर काम करने वाले प्रोजेक्ट से उत्साहित हैं।
यही नहीं डाॅस प्यूईब्लाॅस हाई स्कूल अपने कैम्पस में होने वाले कार्यक्रमों और समाचारों को अपने डीपी न्यूज में जारी करता है। इस स्कूल ने भी अपने परिसर में आयोजनों को क्वाड्रोकाॅप्टर यानि ड्रोन के जरिए फिल्माते हुए प्रचार सामग्री का निर्माण किया। वहां के अध्यापक जाॅन डेंट अपनी क्लास में बच्चों को पढ़ाते समय नवीन तकनीकि को आजमाने में यकीन रखते हैं। जाॅन का मानना है कि ड्रोन के जरिए की जानी वाली वीडियोगाफी भविष्य में एक महत्वपूर्ण योग्यताओं में दर्ज हो जाएगी। बताया जाता है कि इस स्कूल का डीपी न्यूज आॅरलाॅन्डो में आयोजित किए जा रहे नेशनल स्टूडेंट टीवी नेटवर्क काॅन्फ्रेंस में अपना क्वाड्रोकाॅप्टर ले जाने की तैयारी कर रहा है।
13 सितम्बर 2013 को प्रकाशित एक समाचार के मुताबिक पाॅलो आॅल्टो हाई स्कूल में पत्रकारिता के चार विद्यार्थियों ने डीजेआई फैन्टम क्वाड्रोकाॅप्टर और उसमें लगे गो-प्रो कैमरे की सहायता से स्कूल परिसर में झण्डारोहरण, आतिशबाज़ी और फुटबाॅल मैदान की तस्वीरें कैद की। उनके पत्रकारिता शिक्षक पाॅल कैन्डेल का कहना है कि पहली बार उन्होंने ऐरीज़ोना एयरपोर्ट के ब्रूक स्टोन स्टोर में पैरट ए आर ड्रोन देखा तब उनके दिमाग में इस सस्ती तकनीक को क्लास में आजमाने का ख्याल आया। उन्हें लगा कि यह तकनीक बच्चों की शिक्षा में लाभदायक हो सकती है। इसीलिए प्रायोगिक तौर पर इसका इस्तेमाल किया। उनका कहना है कि इसे उपयोग मंे लाने के लिए उनके बच्चों ने केलीफोर्निया के ड्रोन कानूनों का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि स्कूल परिसर में ड्रोन के इस्तेमाल में कोई परेशानी नहीं है। उनका कहना है कि हम तमाम कानूनी प्रतिबंधों को ध्यान में रखकर काम कर रहे हैं और विद्यार्थी ड्रोन के जरिए कैम्पस के अलावा टाॅवर की खूबियों पर एक डाॅक्यूमेंटरी बना रहे हैं।
यूनिवर्सिटी आॅफ पेनिनसिल्वेनिया की जनरल रोबोटिक्स आॅटोमेशन सेंसिंग व परसैप्शन लैब ने स्वार्म या कहें नैनो क्वाड्र्रोअर्स यानि लघु ड्रोन के एक समूह को ईजाद कर प्रायोगिक तौर पर उड़ाया था। इसकी वीडियो को यू-ट्यूब पर 5.3 मिलियन लोगों ने देखा।
स्टीफनविल्ले, न्यूफाऊंडलैण्ड स्थित नार्थ अटलांटिक काॅलेज अपने देश में ड्रोन उड़ाने की शिक्षा देने वाला पहला संस्थान है। वहां ड्रोन संचालन का प्रशिक्षण जनवरी में शुरू किया गया था।