Wednesday, December 29, 2010

गीत - न कहा है, न कहूंगा......तुमसे

पास मैं तेरे आता नहीं हूं, नजरें मैं तुझसे मिलाता नहीं हूं
इश्क न हो जाए तुझसे ये डर है, टूटे हुए इस दिल की फिकर है
.............इसीलिए तो सुनाता नहीं हूं,,,,,, जताता नहीं हूं,,बताता नहीं हूं
...फूल सुनहरा, खिलाता नहीं हूं।


तुम रूठो तो मनाता नहीं हूं, तोहफे से भी रिझाता नहीं हूं
सिहर न जाए तू गम का सफर है, छूटी हुई लकीरों सा ये घर है
.............इसीलिए तो दिखाता नहीं हूं,,,,,, जताता नहीं हूं,,बताता नहीं हूं
...फूल सुनहरा, खिलाता नहीं हूं।


सुर पे तेरे ताल मिलाता नहीं हूं,साया भी तेरा सहलाता नहीं हूं
छूट न जाए तू पतंग सी लहर है, प्यार ये मेरा तो मीठा जहर है
.............इसीलिए तो पिलाता नहीं हूं,,,,,, जताता नहीं हूं,,बताता नहीं हूं
...फूल सुनहरा, खिलाता नहीं हूं।


खुशी तेरी अपनाता नहीं हूं, मन रखने को मुस्काता नहीं हूं
ठहर न जाए तू ये स्याह पतझड़ है, कांच-कांच बिखरी सी सहर है
.............इसीलिए तो, बुलाता नहीं हूं,,,,,, जताता नहीं हूं,,बताता नहीं हूं
...फूल सुनहरा खिलाता नहीं हूं।


Wednesday, December 1, 2010

हे राम! चार सौ अन्ठानवे

अटल राज को पिछले आठ साल से जानता हूं, एक काबिल पत्राकार और नेक इनसान हैं। जवाबदेही उनके व्यवहार में, हर वक्त झलकती है। यही नहीं मीडिया में रहते हुए भी प्रेस कॉफ्रेंस में मिलने वाले तोहफे नकारना और खाने-पीने के लिए इनकार कर देना रोजमर्रा की बात होती है। एक दिन अचानक खबर मिली कि उनकी पत्नी ने दहेज प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज करा दिया है। हालांकि मीडिया में उनकी साफ छवि और सम्मान के मद्देनजर, खबर तो नहीं छपी लेकिन सभी पत्रकार साथियों को इस बारे में पता था। चर्चा गर्म हुई तो मन में कई सवाल कौंध गए। आखिर यह कैसे हुआ? उनकी पत्नी तो सुशील और समझदार थीं, अंग्रेजी साहित्य से एमए भी किया था। अब तीन बच्चे और उनका भविष्य, आखिर किसलिए दांव पर लगा दिया गया।
...........इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं था। लोगों के पास मुद्दा था और चस्का लेने के लिए तमाम मनघडंत बातें, कभी उनकी पत्नी रानी के चरित्रा कोई फब्ती, तो कभी अटल की मर्दानगी पर सवाल,,, जिसके जो मुहं में आया बक दिया। एक दिन अटल से मुलाकात हो गई। दाढ़ी बढ़ी हुई और बेजार अटल को ऐसी हालत में मैने पहली बार देखा था। जिंदगी और उमंग से सराबोर अटल अब अपनी जिंदादिली से विचलित था। पूछा ये क्या हुआ? तो कहानी सामने आई। ........ पत्नी रानी को सभी सहूलियतें दी थीं, खुले विचारों की थीं, उसकी ख्वाहिश अमीर बनने की थी। बंगला, गाड़ी और नौकर चाकर यानि ऐश आराम का साजो सामान उसका फलसफा था। किसी ने सपने दिखाए और बहक गई, रौ में बह निकली,,,, ऐसे में न पति का त्याग दिखाई दिया न ही अपने बच्चों का हक। रानी के पिता बड़े व्यापारी हैं। उनके लिए हर चीज बिजनेस है फिर चाहे वो रिलेशन ही क्यों न हो, बात-बात में कागज और कानून, शक और फायदे का गणित।..... तो उन्होंने भी अटल की कंगाली को कोसते हुए रिश्ता तोड़ने के लिए रणनीति बता दी। वकील बुला लिया गया और मुकदमा दर्ज हो गया। ....... आखिर अटल चार सौ अन्ठान्वे का शिकार हो गया। पुलिस पहुंची तो पत्रकारों ने भी दखल दिया- कहा गया पहले मामले की जांच करो, पड़ताल में आरोप सही निकलें तभी गिरफ्तारी होगी। अड़ गए तो सलाखों की जलालत से बच गए। लेकिन अपमान की आरी ने उसे भीतर से दो फाड़ कर दिया। न खाने का पता, न पहनने का होश......अटल की जिंदगी हाशिए पर आ गई। वकील के चक्कर में बहुत कुछ बिक गया। दोनों तरफ के वकीलों ने जमकर चांदी काटी, आखिरकार तलाक। इसी दिन से एक साहसी पत्राकार काम के बजाए नौकरी करने लगा। सम्पादक ने मौके की नजाकत देख डेस्क पर बैठा दिया। कुछ कर गुजरने की सुनामी का दमखम रखने वाला पत्रकार अब खबर में ज्वारभाटा भी पैदा नहीं करता था। कभी कलेक्टर से लेकर एसपी भी उसके सवालों का सामना करने में कतराते थे। अब नए अधिकारी अटल को जानते तक नहीं हैं। शराबखोरी के खिलाफ सरकार को घेरने वाला पत्रकार, अब खुद ही गम भुलाने को जाम की मदहोशी में डूबा रहता है, कुछ पूछो तो छोटा सा जवाब मिलता है- नथिंग,,,ऑल इज़ वेल, बट लाइफ इज़ ए हैल।.... सब ठीक है मगर जिंदगी नर्क है।
       अटल के पास कई ट्रेनी पत्रकार भाषा कौशल और खबर की बाजीगरी सीखते हैं लेकिन चार सौ अन्ठानवे के मुकदमें की खबर सुधारने के लिए, सबक लेने की हिम्मत, कोई नहीं करता। क्योंकि सभी को पता है कि अटल का दूसरा नाम 498 भी है। यह वही नाम है जिसने उसकी जिंदगी खाक कर दी, उम्मीदें ध्वस्त कर दी और एक साहसी को संकोची बना दिया।
         शराब के नशे में आज भी अटल, अखबारों की सुर्खियां टटोलते वक्त बड़बड़ाता है- हे राम! चार सौ अन्ठानवे.............