Wednesday, January 19, 2011

♣ पूंजीवाद के ब्रॉड एम्बेस्डर गांधीजी ? ♣

                         ♣  पूंजीवाद के ब्रॉड एम्बेस्डर गांधीजी ?  ♣
       गांधीजी ने अहिंसा के आंदोलन का सूत्रापात कर गुलामी की बेड़ियों से रिहाई दिलाई। हाथ में लाठी और बदन पर लंगोट उनकी पहचान बन गया। जिसमें कहीं भी रईसों की रहनुमाई और ऐशो आराम शुमार नहीं था। आजाद भारत के लिए गांधीजी ने आम आदमी के मर्म को मुद्दा बनाया और जायज़ हक की पैरवी की.....जब भी आवाज उठाई, तो उनकी प्राथमिकता या विषयवस्तु में बड़ा तबका यानि गरीब वर्ग शामिल था, जिसे बेजुबान रखने की साजिश हर हुकमरां किया करता रहा, वो चाहे राजा हो या अंग्रेज और अब सरकार। वक्त बदला और देर से ही सही आजादी के सूरज की लाली आम आदमी के हाथ आ ही गई। लेकिन..... स्वाधीनता ने गांधी जी को सम्मान दिया और नोट पर मंढ़ दिया गया। गांधीजी जो कभी पूंजीवाद की दांडी पर नहीं निकले, उन्होंने नमक को चुना, लेकिन सत्ता ने उसे सिक्कों की खनक और नोटों की दमक पर उकेर दिया। अचरज की ही बात है कि लंगोट पहने जिन गांधीजी के पीछे देश की जनता ने दौड़ लगाई,,,, उन्हें आज नोट में तब्दील कर दिया गया हैं। उस हरे-लाल गांधी को पाने के लिए, आज कोई हाड़तोड़ पसीना बहा रहा है तो दूसरी ओर एक बड़ा तबका घोटालों से गांधी हथिया रहा है। आलम यह है कि आज गरीब के हाथ बमुश्किल गांधीजी भत्ता ही आ पाता है क्योंकि जमाखोरी के इस दौर में गांधीजी पर अब भ्रष्टाचारियों, घूसखोरों, मिलावटखोरों और कमीशनबाजों की एक बड़ी गैंग काबिज है। तय है दौड़ गांधीजी के पीछे ही लगाई जा रही है पहले मक्सद आजादी था और आज अमीरी है। बदलाव सिर्फ इतना है कि आज गांधीनोट को पाने की हसरत में गरीब पिछड़ गया है और गांधीनोट के उन्मांद में अमीर उसे बेतहाशा लूट रहा है। ............अगर इस नजारे को खुद गांधी देख लेते तो ........? शायद इस अपभ्रंश व्यवस्था को देखकर वे भी बरबस ही बोल पड़ते.......अब बस करो, जो करना है करो, मुझे नोट से आजाद कर दो, देश में पूंजीवाद का ब्रॉड एम्बेस्डर न बनाओ। अगर कोई मजबूरी है तो गरीब के लिए बनी च्यवन्नी, अठन्नी या एक रूपए के सिक्के में पनाह दे दो लेकिन नोट पर छापकर मेरे नाम की खोट न बनाओ।........
   सच है कि गांधीजी कल आजादी की आंधी थे, आंधी आज भी हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि आम आदमी के गांधीजी का नोट्यरूपांतरण कर उनका हरण अब अमीर ने कर लिया है। अंग्रेजों को अपने अनशन के दम पर बेबस और मजबूर कर देने वाले गांधीजी आज खुद बेबसी और लाचारी के आंसू बहाते हुए, लॉकरों में ठूंसे जा रहे हैं। वैचारिक रूप से समृद्ध गांधीजी को आजादी के प्रतीक के बतौर सम्मानस्वरूप मंडित किया गया। वही गांधीजी आज रंगीन कागजों की शक्ल में कभी चोरी छुपे स्विस बैंक में तो कभी हवाला में काम आ रहे हैं। कुल मिलाकर आम आदमी के लिए खुदको मुफ्त बताने वाले गांधीजी आज बाजार में दो वर्ग के गांधीजी में बदल गए हैं छोटे नोट पर गरीब के और बड़े नोट पर अमीर के। जाहिर है बड़े गांधीजी के सामने छोटे गांधीजी की हैसियत कमजोर ही है। यानि कमजोरों के लिए बड़े गांधीजी अब उनके हाथ से फिसल गए हैं, क्योंकि आजादी के बाद गांधीजी को हासिल करने की कीमत बहुत बड़ी है। अब मुफ्त के गांधीजी पार्क में हैं, स्कूलों की किताबों पर हैं या पोस्टर्स में लेकिन अर्थतंत्र के गांधीजी तो उद्यमियों, राजनेताओं और डिप्लोमेट्स से लेकर लॉबिस्ट की कोठी में अपहृत होकर आज भी गुलाम हैं। सारांश यह कि आजादी का प्रणेता खुद भी गुलाम बना दिया गया है और जिम्मा संभला दिया गया है गुलाम बनाने का। इस नजारे को देख गांधीजी के तीन बंदर भी अब भौंचक्के हैं, वे क्या बोलेंगे- बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो। तो सवाल यह है कि नोट के इस आंदोलन में गांधीजी बुरा होने की गुलामी से रिहाई कैसे दिलाएंगे, वे कुछ नहीं कर सकते तो सवाल यह कि गांधीजी को पूंजीवाद की गुलामी से कौन और कैसे आजाद कराएगा?

Friday, January 14, 2011

नहीं लूंगा, बस दूंगा तुझे,,,,,,तेरे लिए

तेरे लिए बनाउंगा मैं,,,,,,,,,
सुर्ख पंखुड़ियों का घरौंदा,
बुहारूंगा नर्म कमल सी जमीं,
दमकती जुगनू से रोशनी,
और मेरी धड़कनों का झूला,,,,,तेरे लिए उम्र भर


तेरे लिए सजाउंगा मैं,,,,,,,
पलकों का रेशमी पालना,
सुरीले गीतों का बिछौना,
झरती प्यार की सेज,
और मेरे जज़बातों का बंधेज,,,,,,तेरे लिए उम्र भर


तुझे दे जाउंगा मैं,,,,,,,,,,
फूल पलाश के गहने,
महकते मोगरे की चुनरिया,
सीप नयन की मोती माला,
और मेरे लहू के फूल,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,तेरे लिए उम्र भर

Tuesday, January 11, 2011

क्या आप वाकई खूबसूरत हैं ?



हर किसी को ये कॉप्लीमेंट्स रास आ जाते हैं कि आप बहुत स्मार्ट हैं या खूबसूरत हैं। दरअसल फौरी तौर पर इस तरह की टिप्पणी सुनकर आप गर्व का अहसास कर लेते हैं। लेकिन खबरों के सफर में लाखों लोगों से मुलाकात हुई और अस्सी फीसदी खूबसूरत लोग अपने श्रेष्ठता की मद में चूर मिले। यही नहीं मानसिक तौर पर उनमें श्रेष्ठता के गुणात्मक अहसास की विकृति या मनोविकार उनके जीवन का अविभाज्य हिस्सा बना दिखाई दिया। लिहाजा कई बार खबर करते वक्त यह भी देखने को मिला कि ज्यादा आकर्षक और सुंदर चेहरे मोहरे वाले अधिकांश लोग ही अपने जीवन में छोटा बड़ा अपराध करते पाए गए या असफल दिखाई दिए। इसके उलट एवरेज यानि अति सामान्य लोग ज्यादा कामयाब और संयत मिले। यहां बताना जरूरी है कि इन उदाहरणों के जरिए खूबसूरती का अपमान करना या आरोप लगाना नहीं है। मक्सद सुखद सुंदरता समझाना है। कड़वी सच्चाई यह है कि पॉवर यानि शक्ति या श्रेष्ठता कैसी भी क्यों न हो, अक्सर उसका मद इनसान पर हावी हो जाता है। वैसे ही जैसे पत्रकार, नेता और पुलिस अपनी शक्तियों के रोजमर्रा अहसास की भूलभुलैया में अपने भीतर छुपे एक आम इनसान और उसकी निश्चल पहचान गंवा देते हैं। बात फायदे नुक्सान की नहीं है लेकिन मुद्दा है कि अगर ईश्वर ने आपको कुछ अच्छा दिया है तो हमारे पास जो विकृत या कूरूप है उसे खूबसूरत बनाया जाए। अक्सर इसका उल्टा ही होता है। खूबसूरत लोग खुदको संपूर्ण मानकर अपने भीतर कुछ और खूबसूरत बनाने के प्रयास पर विराम लगा देते हैं। वैसे ही जैसे खरगोश और कछुए की बचपन की कहानी में खुदको विजयी मानकर खरगोश आत्मविश्वास के साथ सो जाता है। लेकिन तेज न चल पाने के अहसास के चलते कछुआ अपनी रफ्तार और कोशिशें अनवरत जारी रखता है, आखिरकार जीत जाता है। कुछ ऐसा ही उन लोगों के साथ होता है जिन्हें कुदरत ने कोई कमीं के साथ पैदा किया हो। ऐसे लोगों के भीतर अधूरेपन का अहसास अक्सर बना रहता है इसीलिए लो प्रोफाइल रहते हैं। उन्हें इस बात का अंदाजा रहता है कि उनमें कुछ खास नहीं है। लिहाजा कुछ विशेष बनने की कोशिशें जारी रखते हैं, खुदको अधूरा समझते हुए वह इनसान लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने के लिए तड़पता रहता हैं और इसी जुनून में वह कुछ ऐसा कर गुजरता है जो एक खूबसूरत इनसान नहीं कर सकता।............. इसका सारांश तो यही है आप खूबसूरत हैं तो यह आपके लिए संतुष्टि की विषयवस्तु तो कतई नहीं होनी चाहिए। क्योंकि सुंदरता की गलत परिभाषा आपको सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकती न ही सोचने का तौर तरीका दे सकती है। मसलन चेहरा-मोहरा, कद काठी, खूबसूरती के लिए महज मेकअप हो सकता है। मगर असल खूबसूरती तो वह जो लगातार किसी न किसी चीज को खूबसूरत बनाती चले और हर इनसान के भीतर छुपी किसी न किसी खासियत की इज्जत करे।