Tuesday, January 11, 2011

क्या आप वाकई खूबसूरत हैं ?



हर किसी को ये कॉप्लीमेंट्स रास आ जाते हैं कि आप बहुत स्मार्ट हैं या खूबसूरत हैं। दरअसल फौरी तौर पर इस तरह की टिप्पणी सुनकर आप गर्व का अहसास कर लेते हैं। लेकिन खबरों के सफर में लाखों लोगों से मुलाकात हुई और अस्सी फीसदी खूबसूरत लोग अपने श्रेष्ठता की मद में चूर मिले। यही नहीं मानसिक तौर पर उनमें श्रेष्ठता के गुणात्मक अहसास की विकृति या मनोविकार उनके जीवन का अविभाज्य हिस्सा बना दिखाई दिया। लिहाजा कई बार खबर करते वक्त यह भी देखने को मिला कि ज्यादा आकर्षक और सुंदर चेहरे मोहरे वाले अधिकांश लोग ही अपने जीवन में छोटा बड़ा अपराध करते पाए गए या असफल दिखाई दिए। इसके उलट एवरेज यानि अति सामान्य लोग ज्यादा कामयाब और संयत मिले। यहां बताना जरूरी है कि इन उदाहरणों के जरिए खूबसूरती का अपमान करना या आरोप लगाना नहीं है। मक्सद सुखद सुंदरता समझाना है। कड़वी सच्चाई यह है कि पॉवर यानि शक्ति या श्रेष्ठता कैसी भी क्यों न हो, अक्सर उसका मद इनसान पर हावी हो जाता है। वैसे ही जैसे पत्रकार, नेता और पुलिस अपनी शक्तियों के रोजमर्रा अहसास की भूलभुलैया में अपने भीतर छुपे एक आम इनसान और उसकी निश्चल पहचान गंवा देते हैं। बात फायदे नुक्सान की नहीं है लेकिन मुद्दा है कि अगर ईश्वर ने आपको कुछ अच्छा दिया है तो हमारे पास जो विकृत या कूरूप है उसे खूबसूरत बनाया जाए। अक्सर इसका उल्टा ही होता है। खूबसूरत लोग खुदको संपूर्ण मानकर अपने भीतर कुछ और खूबसूरत बनाने के प्रयास पर विराम लगा देते हैं। वैसे ही जैसे खरगोश और कछुए की बचपन की कहानी में खुदको विजयी मानकर खरगोश आत्मविश्वास के साथ सो जाता है। लेकिन तेज न चल पाने के अहसास के चलते कछुआ अपनी रफ्तार और कोशिशें अनवरत जारी रखता है, आखिरकार जीत जाता है। कुछ ऐसा ही उन लोगों के साथ होता है जिन्हें कुदरत ने कोई कमीं के साथ पैदा किया हो। ऐसे लोगों के भीतर अधूरेपन का अहसास अक्सर बना रहता है इसीलिए लो प्रोफाइल रहते हैं। उन्हें इस बात का अंदाजा रहता है कि उनमें कुछ खास नहीं है। लिहाजा कुछ विशेष बनने की कोशिशें जारी रखते हैं, खुदको अधूरा समझते हुए वह इनसान लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने के लिए तड़पता रहता हैं और इसी जुनून में वह कुछ ऐसा कर गुजरता है जो एक खूबसूरत इनसान नहीं कर सकता।............. इसका सारांश तो यही है आप खूबसूरत हैं तो यह आपके लिए संतुष्टि की विषयवस्तु तो कतई नहीं होनी चाहिए। क्योंकि सुंदरता की गलत परिभाषा आपको सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकती न ही सोचने का तौर तरीका दे सकती है। मसलन चेहरा-मोहरा, कद काठी, खूबसूरती के लिए महज मेकअप हो सकता है। मगर असल खूबसूरती तो वह जो लगातार किसी न किसी चीज को खूबसूरत बनाती चले और हर इनसान के भीतर छुपी किसी न किसी खासियत की इज्जत करे।

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