Friday, February 11, 2011

दरअसल प्यार क्या है? ------स-ब


         संचार की एक परिभाषा में कहा गया है कि विचारों का आदान-प्रदान ही संचार है, प्यार भी एक तरह का आजीवन संचार है। वह भी देना और पाना है, लेकिन वह लघु और दीर्घ आवृत्ति का भी होता है। कहतें हैं पहली नजर में प्यार हो गया, सच यह है कि देखने का एक प्रभाव है ठीक उसी तरह जैसे हर एक इनसान दूसरे को प्रभावित करता है, या तो दूसरे के अनुकूल या फिर रिझाने के लिए उसके अनुरूप बनने का स्वांग रचा जाता है। लेकिन पहली नजर के प्यार के संदर्भ में महज सूरत यानि छवि और डील डौल यानि फिजिकल एपीरियंस को पसंद करते हुए आधार मान लिया जाता है। उसे साझेदारी को कसौटी पर कसा नहीं जाता इसीलिए कामयाबी या शेयरिंग अस्थाई हो सकती है।.........कुछ लोग बाद में कहते हैं, कि विचार नहीं मिलते। मोटे तौर पर इसका कारण फिजिकल अट्रेक्शन को महत्व दिया जाना है। यानि रूप रंग, हाव भाव यानि स्टाइल और प्राकृतिक रूप से लैंगिक आकर्षण हावी हो जाते हैं और मान लिया जाता है कि प्यार हो गया। वह महज फिजिकल अपीरियंस इफैक्ट होता है।
         दरअसल, प्यार में बहुत गहराई होती है वैसे ही जैसे हम भगवान को मानते हैं, पूजते हैं, उनसे अनुनय विनय करते हुए शिकायत करते हैं, मन्नतें पूरी न होने पर भी हमारा विश्वास डगमगाता नहीं है। वही प्यार में समर्पण और त्याग की आदर्श स्थिति है। इसीलिए हमारे पूर्वज कामयाब जोड़े साबित हुए क्योंकि उनमें विचारों में भिन्नता के बावजूद एक दूजे के लिए प्यार के साथ-साथ समर्पण और कुर्बानी की वचनबद्व मानसिकता ठोस थी। यह सब संस्कार की बात है। जहां त्याग समर्पण के साथ दायित्व बोध का क्षरण हो जाता है वहां प्यार का घड़ा कच्चा साबित होता है और संघर्ष की हल्की सी फुहार से फूट जाता है। क्योंकि जीवन की दहलीज पर कई इम्तिहान देने पड़ते हैं। ऐसे में जीवन साथी के प्रति शर्तरहित यानि अनकंडीश्नल अनुबंध ही प्यार को चिरस्थाई रखता है।
      भगवान राम को पाने के लिए माता सीता ने पहले भगवान शिवजी को प्रसन्न किया और असंभव धनुष को उठाना संभव बनाया। सीता अपने पति के प्रति अगाध प्रेम को उनकी सोच से सोच मिलाकर निभाती गई। उसने महल और ऐशवर्य का त्याग कर पति के साथ जंगलों का सफर तय किया। बाद में अग्नि परीक्षा और विरह की अग्नि में भी जली। मीरा का प्रेम भी अपने आराध्य कृष्ण भगवान के लिए वैसा ही था यानि अनकंडीश्नल।  असल में यही प्यार की परम् अनुबंधित और समर्पित स्थिति होती है।
       मैने अपनी भाभी से पूछा, भईया को कितना प्यार करती हो, उन्हें क्या मानती हो? जवाब मिला - वो तो मेरे गुरू हैं, और जीवन की पतवार हैं, गुस्सा करें तो सोचती हूं कहीं गलती हो गई हुई है, जब उनसे होती है तो नकार जाती हूं क्योंकि उनसे शिकायत नहीं है वो दीर्घ प्यार हैं यानि प्यार का विस्तृत पक्ष और केंद्र, वहीं मैं लघु हूं यानि अनन्य समर्पण और प्यार की माली। उनके लिए मन में भाव हमेशा स्थाई रहता है उसमें एडिटिंग नहीं होती। दिक्कत उन लोगों को होती है जो प्रेम में मेहंदी बनकर रचने के नियमों का पालन नहीं करते, एडामेंट या रिजिड हो जाते हैं यानि व्यर्थ के अहंकार में प्यार का रंग फीका पड़ जाता है। कुछ खोना नहीं चाहते, अपनी प्राथमिकता और वो भी सर्वोपरि, सबसे पहले मेरा हक।
     भाभी बड़ी ज्ञानी हैं सही कहती हैं कि प्यार में दायित्व पक्ष भी है, एक बेटे का माता-पिता के लिए और अपनी बहन व भाई के लिए साथ में कुछ दोस्तो से नाता निभाने के लिए साथ ही अपने कर्मस्थल की अनएडजस्टेबल डिमांड या रिक्वॉयरमेंट पूरी करने के लिए भी।
.........लेकिन होता क्या है कि जब प्यार यथार्थ से टकराता है तो ऐसी परीक्षाओं में ज्यादातर लोगों का मानसिक आलम्बन उसके दायित्व से नहीं होता। क्योंकि उनके जीवन में प्यार किसी फैंटेसी यानि परिकल्पना की तरह परिभाषित रहता है, वैसे ही जैसे रब ने बना दी जोड़ी फिल्म की नायिका अपने अन्तःकरण यानि मानस में जीवन साथी की एक फैंटेसी गढ़ लेती है। इसमें निर्देशक ने बड़ी ही चतुराई से दर्शकों को प्यार की फैंटेसी यानि मृगतृष्णा या कहें कपोल कल्पित सोच का अहसास करा दिया। असल में प्यार केयरिंग और हीलिंग दोनों से गहरे जुड़ा होता है। उसमें नाप-तोल, जोड़-बाकी जैसा बहीखाता नहीं चलता।
    प्यार का मतलब पलना और बढ़ना भी है, वैसे ही जैसे एक छोटा बच्चा अगर बड़ा न हो तो क्या होगा? इसीलिए प्यार संयमित श्रृंगार और पूजा भी मांगता है। उसे अपने भीतर सजाना और संवारते रहना पड़ता है, सरस बनाए रखने के लिए हर पल सांसों में सींचना पड़ता है। वैसे ही जैसे पुरूष हर रोज दाड़ी बनाते हैं और महिलाएं अपने रूप-रंग को चमकाने के जतन करती हैं। यदि मानसिक रूप से प्यार का फेशियल नहीं किया जाता और धोया नहीं जाता तो उसमें अहंकार और मान अपमान जैसे बैक्टीरिया पनप जाते हैं जो प्यार का नर्म अहसास खा जाते हैं और सख्त होते ही वह तकरार बन जाता है। यही नहीं वक्त के साथ-साथ प्यार को पालते पोसते हुए उसके बड़े होने की तैयारी भी करनी पड़ती है। प्यार में कई तरह की मैच्योरिटी भी आती है यदि दोनों उसे अपना नहीं पाते तो भी प्यार का रंग स्याह हो जाता है। कॉलज के प्यार में बचपना होता है, विवाह के बाद उसे वक्त के साथ साथ प्यार की सामाजिक जिम्मेदारियों के अनुकूल मैच्योर बनाना पड़ता है, कुछ छोड़ना पड़ता है कुछ अपनाना पड़ता है।
     उदाहरण के लिए एक मां अपने अबोध बच्चे को पालती पोसती है, उसे अपने मुताबिक शिक्षित करती है। लेकिन आगे चलकर यदि बच्चा उसके अनुकूल नहीं है तब भी वह अनुकूलन स्थापित कर लेती है। बच्चे से उसका लगाव अनकंडीश्नल होता है। बेटा नालायक है तो भी मां का ममत्व वही और लायक है तब भी वही लगाव। वहीं एक भाई अपनी बहन को लेने के लिए दूर तक जाता है तो कभी घंटों इंतजार करता है। उसी प्रकार एक जीवन साथी के भीतर कहीं मां का अंश होता है, कुछ पिता का साया भी। मगर एक परिवार और जिम्मेदारियों को निभाने के लिए हस्तक्षेप और सहभागिता का महत्वपूर्ण किरदार भी निभाना हैं उसमें कभी पत्नी के प्यार को प्यासा रखना है, कभी मां के और वैसे ही पिता के भी। फिर भी तालमेल यानि केमेस्ट्री में खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। जहां कुछ रिक्तता रखी गई है वह पक्ष उसके मायने समझे और उसे सहने के बजाए सहज स्वीकार करे।
     एक अहम पक्ष और है कि आज की दुनियां में उपभोक्तावाद चरम् पर है, लिहाजा लड़के-लड़की को सब कुछ चाहिए। अपनी देह को आराम देने के लिए तमाम तरह की सुख सुविधाएं। लिहाजा प्यार करने से पहले कई लड़कियां और लड़के चुनाव करते हैं। घर बार ठीक है यानि यह सुनिश्चित किया जाता है कि पैसे की कोई कमी नहीं हो। ऐसे मे प्यार में एक कंडीशन आ गई। सच तो यह भी है कि प्यार को किसी भी मुद्रा से खरीदकर आनन्द नहीं उठाया जा सकता, इंजोए नहीं किया जा सकता। हां हम एक मैटीरियल या प्रॉडक्ट को हासिल कर एक खुशी जरूर पा सकते हैं, जो असल में कभी भी तुष्ट नहीं होती वह अनन्त है। क्योंकि प्यार एक व्यक्ति से किया जाता है न कि उसके पास मौजूद सुविधाओं से, क्योंकि सुविधाएं पैदा भी की जा सकती हैं और छूट भी सकती हैं। एक उदाहरण सहारा श्री यानि सुब्रत रॉय भी हैं। जिन्होंने प्यार किया और विवाह किया। महज दो हजार रूपए से चिट फंड कंपनी स्थापित की और आज तकरीबन 9 लाख कर्मचारियों की जिम्मेदारी उठा रहे हैं। सहाराश्री के मामले में क्या हुआ बताना जरूरी है। वहां प्यार की ताकत ने एक व्यक्ति में आत्मविश्वास को कई गुणा बढ़ा दिया। अपनी जीवन शैली में ही प्यार को जोड़ दिया या कहें प्यार को बूस्टर डोज बना दिया गया।
        प्रेमी युगलों की बात करें तो अक्सर ऐसे संबंधों में एक दूजे पर समान हक की मानसिकता हावी होती है। चूंकि दोनों एक दूसरे को पहले से जानते हैं लिहाजा दोनों की तरफ से कई बार एडजेस्टमेंट में दिक्कत आती है वो इसलिए कि पहले प्यार हुआ फिर शादी हुई। यहां लव डॉमिनेट करता है। जबकि डॉमिनेट करने के बजाए सहसंबंध में और शीतलता लानी चाहिए। इसीलिए अरेंज मेरिज कुछ ज्यादा कामयाब होती रहीं हैं क्योंकि वहां पत्नी को ससुराल के मुताबिक दोबारा अपना सामाजीकरण करना पड़ता है। वहां डॉमिनेशन होता मगर एक पक्षीय और पत्नी कई दबावों और बंधनों से घिरी रहती है। एडजेस्टमेंट में दिक्कत होने पर भी पीहर पक्ष साथ नहीं देता अपितु ससुराल को समर्थन देता है। दूसरा कारण है कि वहां इंटरकास्ट जैसा कोई फैक्टर नहीं होता और भारी सामाजिक और पारिवारिक दबाव होता है। लिहाजा विषम परिस्थितियों के बावजूद स्त्री सब कुछ सहती है और कालांतर में सामंजस्य स्थापित कर ही लेती है, वह अपने सोचने का नजरिया ही बदल डालती है। लेकिन लव मैरिज में इसके बहुत कुछ उलट होने का खतरा बना रहता है। चूंकि लड़की की अपने साथी से दोस्ती घनी होती है लिहाजा वह किसी भी मोर्चे पर लधु किरदार अपनाना नहीं चाहती और एडजस्टमेंट में कमजोर पड़ जाती है, वहीं कॉफ्लिक्ट पैदा हो जाता है।
         कुल मिलाकर प्यार एक कमिटमैंट है उसमें कोई शर्त नहीं लेकिन नियम जरूर है एक तो मानसिक खाद में कमीं कटौती नहीं चलती, दूसरा डोमिनेशन नुक्सान पहुंचाता है या आहत करता है, केयरिंग और हीलिंग के साथ क्विक एडजेस्टमेंट और छोटी-मोटी बातों को इग्नोर किए बिना प्यार को सहेजा नहीं जा सकता। पत्नी का अत्यधिक पीहर प्रेम जैसा कॉक्टेल भी किसी एक बिंदू पर प्यार को अस्वस्थ करने का बड़ा कारण बनता है।
      सच्चाई तो यह है कि प्यार पर कई सामाजिक फैक्टर हस्तक्षेप करते रहते हैं और प्रभाव डालते हैं। उसमें असल प्यार ही जीवनपर्यन्त बहता है और वो भी तब जब बॉडिंग मजबूत हो यानि एक दूजे के बिना जीवन की परिकल्पना अस्तित्वहीन हो, उसमें छलावा न हो और न ही आर्थिक आधार पर किसी बुनियाद को गढ़ा जाए। मजबूत तर्क यह भी है कि प्यार विश्वास के साथ आत्मविश्वास देता है जाहिर है प्यार कभी गरीब होता ही नहीं है, उसमें साथी के दो मीठे बोल जीवन में साहस और उर्जा भर देते हैं। धन तो माया है आता जाता रहता है। जिसे देश और दुनियां के कई लोगों ने मंदी यानि रिसेशन के दौर में नौकरी चले जाने पर भोगा था, उस दौर में जिसके पास असल प्यार नहीं था, वहां आर्थिक तंगी से तनाव पैदा हुआ और जहां प्यार का मजबूत अनुबंध था उन्होंने ऐसे कठिन दौर को भी मनमीत की प्रीत के सहारे सहजता से गुजार लिया।
    प्यार, तर्क की विषयवस्तु नहीं है बल्कि जीवन दर्शन है उसके लिए एक त्रिकोण भी आवश्यक है महिला, पुरूष और दोनों के बीच प्यार को रिचार्ज करने के लिए भगवान या कुलदेवता या ईष्टदेव के प्रति दोनों साथियों का समान समर्पण। क्योंकि वहीं से प्रेम को पल्लवित करने की ऐनर्जी मिलती है। इसीलिए कहते हैं कि लव इज़ स्प्रिच्युअल या लव इज अ सिन्सियर ड्यूटी विथ ऑनेस्टी। अगर महज शरीर से किया गया, तो टिका≈ नहीं होगा। मिलान मन का है और एक दूसरे के लिए बढ़ चढ़कर करने की शर्तरहित सोच रखते हुए साथी को जीवन का केंद्र मान लिया जाए...... बगैर एक्पेक्टेशन के यानि रिटर्न की चिंता या मनन नही, वही सफल प्रेम है, जो कुछ मांगता नहीं है बस अनवरत देता रहता है। जीवन के सौन्दर्य को समझने के लिए प्रेम किया जाना चाहिए जो निश्चल हो और शारीरिक या आर्थिक आडम्बर से मुक्त हो। 

5 comments:

  1. 'pyaar' par bahut hi sundar likha hai aapne
    badhiya post hai

    aabhaar

    ReplyDelete
  2. इस बात में कोई भी दो राय नहीं है कि लिखना बहुत ही अच्छी आदत है, इसलिये ब्लॉग पर लिखना सराहनीय कार्य है| इससे हम अपने विचारों को हर एक की पहुँच के लिये प्रस्तुत कर देते हैं| विचारों का सही महत्व तब ही है, जबकि वे किसी भी रूप में समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच पहुँच सकें| इस कार्य में योगदान करने के लिये मेरी ओर से आभार और साधुवाद स्वीकार करें|

    अनेक दिनों की व्यस्ततम जीवनचर्या के चलते आपके ब्लॉग नहीं देख सका| आज फुर्सत मिली है, तब जबकि 14 फरवरी, 2011 की तारीख बदलने वाली है| आज के दिन विशेषकर युवा लोग ‘‘वैलेण्टाइन-डे’’ मनाकर ‘प्यार’ जैसी पवित्र अनुभूति को प्रकट करने का साहस जुटाते हैं और अपने प्रेमी/प्रेमिका को प्यार भरा उपहार देते हैं| आप सबके लिये दो लाइनें मेरी ओर से, पढिये और आनन्द लीजिये -

    वैलेण्टाइन-डे पर होश खो बैठा मैं तुझको देखकर!
    बता क्या दूँ तौफा तुझे, अच्छा नहीं लगता कुछ तुझे देखकर!!

    शुभाकॉंक्षी|
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    (देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
    फोन : 0141-2222225(सायं सात से आठ बजे के बीच)
    मोबाइल : 098285-02666

    ReplyDelete
  3. यदि आप हिंदी और हिंदुस्तान से प्यार करते है तो आईये हिंदी को सम्मान देने के लिए उत्तर प्रदेश ब्लोगेर असोसिएसन uttarpradeshblogerassociation.blogspot.com के सदस्य बने अनुसरण करे या लेखक बन कर सहयोग करें. हमें अपनी id इ-मेल करें. indianbloger @gmail .com

    ------ हरेक हिंदी ब्लागर इसका सदस्य बन सकता है और भारतीय संविधान के खिलाफ न जाने वाली हर बात लिख सकता है । --------- किसी भी विचारधारा के प्रति प्रश्न कर सकता है बिना उसका और उसके अनुयायियों का मज़ाक़ उड़ाये । ------- मूर्खादि कहकर किसी को अपमानित करने का कोई औचित्य नहीं है । -------- जो कोई करना चाहे केवल विचारधारा की समीक्षा करे कि वह मानव जाति के लिए वर्तमान में कितनी लाभकारी है ? ----- हरेक आदमी अपने मत को सामने ला सकता है ताकि विश्व भर के लोग जान सकें कि वह मत उनके लिए कितना हितकर है ? ------- इसी के साथ यह भी एक स्थापित सत्य है कि विश्व भर में औरत आज भी तरह तरह के जुल्म का शिकार है । अपने अधिकार के लिए वह आवाज़ उठा भी रही है लेकिन उसके अधिकार जो दबाए बैठा है वह पुरुष वर्ग है । औरत मर्द की माँ भी है और बहन और बेटी भी । इस फ़ोरम के सदस्य उनके साथ विशेष शालीनता बरतें , यहाँ पर भी और यहाँ से हटकर भी । औरत का सम्मान करना उसका अधिकार भी है और हमारी परंपरा भी । जैसे आप अपने परिवार में रहते हैं ऐसे ही आप यहाँ रहें और कहें हर वह बात जिसे आप सत्य और कल्याणकारी समझते हैं सबके लिए ।

    आइये हम सब मिलकर हिंदी का सम्मान बढ़ाएं.

    ReplyDelete
  4. अत्यन्त उपयोगी आलेख. आभार...

    हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । कृपया जहाँ भी आप ब्लाग फालो करें वहाँ एक टिप्पणी अवश्य छोडें जिससे दूसरों को आप तक पहुँच पाना आसान रहे । धन्यवाद सहित...
    http://najariya.blogspot.com/

    ReplyDelete
  5. सर, एकदम सही वास्तविक धरातल पर रख कर लिखी गई है प्यार की जो सम्भवतया अभी तक किसी ने दी नहीं या मैंने पढी नहीं। सबसे सुनदर लाईन है " प्यार, तर्क की विषयवस्तु नहीं है बल्कि जीवन दर्शन है"

    ReplyDelete