आज 12 जून मेरा जन्मदिन है।
..........अब तक के जीवन सफर में अपने अपनों और बॉसेज यानि गुरूओं और साथियों के अलावा वक्त के उतार चढ़ाव से बहुत कुछ सीखा। कुछ सीखा और कुछ खुद ही ईजाद किया लेकिन प्रेरणा कहीं समाज था तो कहीं प्रकृति तो कभी ईश्वर का प्रसाद। ...........मक्सद एक ही था जीवन को बेहतर तरीके से जीना। मैने अपने भीतर गांधीजी, भगतसिंह और महात्मा बुद्ध के दर्शन को पनाह दी.....उसे अपनाया लेकिन बहुत बार महात्मा बुद्ध का मध्यम मार्ग काम आया। .........लेकिन मेरे गुरू कहते हैं जो आपने समाज से लिया है उसे आपको लौटाना है...........सच कहते हैं हम सभी यह जिम्मेदारी भूल बैठे हैं कि हमें भी किसी ने कुछ दिया है....जिसके ले चुकने का हमें अहसास तक नहीं है। बहरहाल मैं आज अपने शब्दों के जरिए समाज से हासिल और अपनी सोच में शामिल दर्शन को सामने रख रहा हूं। जिसे अपनाकर मैने कुछ खोया लेकिन संतुष्टि बहुत पाई।
......इस आलेख के जरिए सभी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं कि जाने अनजाने छोटे-बड़े ने कब कहां किसने मुझे क्या दे दिया उसे खुद ही अहसास न होगा। किसी ने नया विचार,, किसी ने जीने का तौर तरीका....किसी ने प्यार-दुलार और उसका अहसास....तो किसी ने दर्द और मुसीबत....फिर किसी ने समस्या से लड़ने का नुस्खा। तो सभी को सादर धन्यवाद।
“ सब समझता हूं मैं, पर कुछ बोलता नहीं हूं......कई आंखों की बदजबानी को लफजों से तोलता नहीं हूं ”
1. हर इनसान अपने लिए जीतना चाहता है पाना चाहता है खोना नहीं चाहता। यह सब कुछ सभी करते हैं लेकिन अकेले जीतने का मतलब तो स्वार्थी होना ही है, दरअसल जब आपको दूसरों को जिताने में खुशी महसूस हो तब आपकी जीत है। और आपकी अपनी जीत तब है जब आपके साथी या सहयोगी उसे खुदकी जीत मान लें।
2. खबरों के सफर में कई लोग मिले,,, गिनती करना मुश्किल है लेकिन उनमें नकाबपोशों या बहुरूपियों की संख्या ज्यादा थी। ऐसे लोगों को देखकर मन में एक वाक्य आया- अक्सर होठ पर मीठा और आंखों में तीखा क्यों दिखाई देता है- यानि होठ जो शब्दों की शक्ल में पेश कर रहे हैं वो बयान, आंखों से मैच नहीं हो रहे। खैर मुझे तो यही समझ आया कि आम इनसान बनना ज्यादा कठिन काम है क्योंकि उसमें कुर्बानियां बहुत देनी पड़ती हैं,,,,बहुत सहना पड़ता है और बगैर कुछ पाने की चाहत के अपना दायित्व निभाना पड़ता है। पत्रकारिता के पड़ाव में बहुत कुछ देखा दबे कुचले लोग, दबंग लोग, दौलतमंद लोग और दायरे लांघने वाले लोग। ग्लैमर, गरीबी, बेचारगी, साहस, समर्पण और साजिश सब कुछ। फिल्मी सितारों से लेकर जमीदोज सितारे भी ,,,,,सोना-चांदी और लोगों की दुश्वारियां भी। देख समझकर यही ज्ञान मिला ........न कुछ पाने की तमन्ना है न खोने का गम.....जो खोना था खो चुका...जो होना था हो चुका.......। खैर गनीमत रही कि खुदपर कोई मुखौटा कभी रास नहीं आया.......जैसा भगवान ने बनाया था वैसा ही रहा,,,इस बात की खासी राहत है। दरअसल इसके श्रेय भी मुझे नहीं जाता है। दादा-दादी, माता-पिता और बडे़-बूढ़ों ने संस्कार दिए और बेहतर सामाजीकरण करने में हमपर बहुत परिश्रम किया।
....... सच यह है कि इनसान बनिए... किसी की मदद कर सकें तो कीजिए, अगर कुछ नहीं कर सकते तो दुआ कीजिए। क्योंकि पॉजिटिव एनर्जी यानि सकारात्मक तरंगे आपको तभी लाभ पहुंचाती हैं। जब आप मन के भीतर झील की तरह निर्मल सोच रखते हैं।
....... सच यह है कि इनसान बनिए... किसी की मदद कर सकें तो कीजिए, अगर कुछ नहीं कर सकते तो दुआ कीजिए। क्योंकि पॉजिटिव एनर्जी यानि सकारात्मक तरंगे आपको तभी लाभ पहुंचाती हैं। जब आप मन के भीतर झील की तरह निर्मल सोच रखते हैं।
3. सभी दुःखों कारण एक्सपेक्टेशंस हैं यानि हमने उसके लिए यह किया - वह किया और देखो अहसान तो मानता नहीं .....उसने मदद का यह सला दिया। अरे भाई करके भूल जाओ...........नेकी करो गटर में डालो.....क्योंकि अब दरिया तो रहे नहीं। भलाई कीजिए लेकिन अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए.......यह सोचकर कि हमारे लिए भी किसी ने कुछ किया है। एक कर्ज है जिसे चुकाना है...दुनियां से लिया है उसे लौटाना है। अहसान की अदायगी के भंवर में उलझना बेकार और नाजायज है।
4. अपने आपको खुद ही जज बनकर इवेल्यूएट करो यानि छात्र भी आप परीक्षक भी आप। यह तो सभी जानते हैं कि आपकी स्लेट पर जो लिखा गया है वो आपकी जिम्मेदारी है उसमें न कोई कुछ घटा सकता है न ही बढ़ा सकता है। आप दूसरे की स्लेट पर ज्यादा देखकर परेशान हों यह गलत है। यह भी गलत है कि खुदको ओवरमार्किंग करें। खुदको ईमानदारी से जांचे और अटेस्टेड करें। दूसरों की राय को सुने और सही लगे तो एडिट करें यानि अपनी सोच को संपादित करें।
5. कोई इनसान खराब नहीं होता। भगवान ने सभी को एक जैसा बनाया है। हां कोई खराब लगता है तो वह महज गंदगी से घिर जाता है। जैसे कपड़े गंदे हो जाते हैं। तो उसके लिए डिटर्जेट पॉउडर से धोया जाता है। आपमें प्यार और समर्पण के साथ किसी को अपने में भरोसा पैदा करने के लिए हर तकलीफ उठाने की हिम्मत होनी चाहिए। हम रोज नहाते हैं तब बदबू और मैल से निजात मिल जाती है। स्वस्थ महसूस करते हैं तो ऐसे ही बुरे की बुराई धोकर हम और दूसरा भी स्वस्थ बन जाता है।
........लोग कहते हैं कि सीधी उंगली से घी नहीं निकलता टेढ़ी कर लो.....क्यों करें भाई- हममे दम है तो बोतल ही टेढ़ी नहीं कर लेंगे।
........लोग कहते हैं कि सीधी उंगली से घी नहीं निकलता टेढ़ी कर लो.....क्यों करें भाई- हममे दम है तो बोतल ही टेढ़ी नहीं कर लेंगे।
6. एक सच्चाई यह भी है कि कामयाबी की उम्र बहुत छोटी होती है। जब भी कामयाबी मिली तो उसका जश्न मनाया और अचानक उसकी खुशी फीकी पड़ जाती। तब लगा कि असल में नाकामयाबी या संघर्ष की उम्र ज्यादा होती है तो उसका लुत्फ उठाया जाना चाहिए। क्योंकि जिस दिन मंजिल हासिल उस दिन विराम यानि फुल स्टॉप। दो दिन के बाद मायने खत्म महत्व कमजोर। अचानक ब्रेक लग जाता है। उसके बाद अगली कामयाबी की चिंता। तो मज़ा तो दिक्कतों का ही उठाना चाहिए। कहना आसान है लेकिन करना अब भी बहुत मुश्किल होता है। दिमाग को जाने कितने बार कितने तरीकों से समझाना और एडिट करना पड़ता है।
7.मुझमें एक कमी थी कि मैं पहले तो गांधीजी के दर्शन को लेकर चलता रहा यानि सहता रहा तब परेशान रहा। अचानक आंदोलित हो उठा तो भगतसिंह की राह पकड़ डाली। फिर वही मुसीबत न गांधीजी का फार्मूला चलता दिखा न ही भगतसिंह का। एक दिन महात्मा बुद्ध के मध्यम मार्ग का ख्याल आया। उनको कभी ढंग से पढ़ तो नहीं पाया लेकिन मध्यम मार्ग के शब्द में बहुत कुछ समझ आया। अब त्रिकोण बन गया। क्योंकि हर समय गाय या शेर की भूमिका से काम नहीं चलाया जा सकता कभी-कभी आपको कुछ नहीं बनना चाहिए यानि लचीलापन, संयम, साहस, जोश और होश एक साथ चलना चाहिए। ...........
.............हैण्डल विथ केयर...........या फिर हैण्डल विथ हेयर.......डॉक्टर इनसान का हूं लेकिन जानवरों का ईलाज करना भी आता है।.......दरअसल सच तो यह है कि जिसे लोग दुशमन जैसा कहते हैं वैसा कुछ होता ही नहीं है.......दुश्मन से प्यार कीजिए उसकी केयर कीजिए लेकिन अपना बैर साधने के लिए कभी दूसरे का इस्तेमाल मत कीजिए। रिपेयर कीजिए, मरम्मत कीजिए सब कुछ ठीक हो जाता है। नहीं भी हो तो आपकी आत्मा पर कोई बोझ नहीं रहता कि आपने कोई सकारात्मक पहल नहीं की।
.............हैण्डल विथ केयर...........या फिर हैण्डल विथ हेयर.......डॉक्टर इनसान का हूं लेकिन जानवरों का ईलाज करना भी आता है।.......दरअसल सच तो यह है कि जिसे लोग दुशमन जैसा कहते हैं वैसा कुछ होता ही नहीं है.......दुश्मन से प्यार कीजिए उसकी केयर कीजिए लेकिन अपना बैर साधने के लिए कभी दूसरे का इस्तेमाल मत कीजिए। रिपेयर कीजिए, मरम्मत कीजिए सब कुछ ठीक हो जाता है। नहीं भी हो तो आपकी आत्मा पर कोई बोझ नहीं रहता कि आपने कोई सकारात्मक पहल नहीं की।
8. संस्कृत का एक श्लोक दसवीं में पढ़ा था-
सत्यम् ब्रूयात प्रियम बू्रयात, न बू्रयात असत्यं च प्रियम...
असत्यमं च नानृतम ब्रूयात, एशः धर्म सनातनः।
सत्यम् ब्रूयात प्रियम बू्रयात, न बू्रयात असत्यं च प्रियम...
असत्यमं च नानृतम ब्रूयात, एशः धर्म सनातनः।
सच बोलो, झूठ न बोलो लेकिन ऐसा सच भी न बोलो कि भूचाल आ जाए। किसी को बेहद अधिक नुक्सान पहुंचा जाए। ऑलेवज स्पीक द टु्रथ....बट बी केयरफुल इन डिलीवरिंग द टु्रथ.....इट शुड नॉट हैम्पर ऑर डैमेज समथिंग ऑर समवनस इमोशन।
9. जोड़ना सीखिए......तोड़ना तो सब जानते हैं उसमें कोई कौशल की जरूरत नहीं होती आसान काम है कोई भी कर सकता है। रिपेयर करना बड़ा जटिल काम होता है। क्योंकि गुस्सा होना आसान है उसके परिणाम भी दो लोगों के लिए नकारात्मक होते हैं। हां आत्मसम्मान का मसला हो तो तीखे तेवर निभाना लाजिमी है।
एक उदाहरण है जो मुझमें रचा बसा रहता है और वो है राजा अशोक महान - जिन्होंने कलिंग का युद्ध जीतकर अपनी शक्ति का सबूत दिया। लेकिन युद्ध के बाद विध्वंस को देखकर वे खुद अपनी संहारक शक्ति से घबरा गए। सोचा किस कीमत पर जीत हासिल हुई। आखिरकार हाथ जोड़कर कह गए- मैं युद्ध नहीं चाहता। यही कुछ मुझमें समाया है कि मैं कहीं भी युद्ध नहीं चाहता क्योंकि अड़ गया तो संहार होगा।
..............बातें और भी हैं लेकिन यहीं विराम लेना होगा। इस आलेख के जरिए मेरे जीवन में भागीदारी निभाने और उनके अपने चरित्र के मुताबिक मुझे सम्मान या अपमान देने वाले सभी लोगों को मेरा सादर नमन।
धन्यवाद !
स.ब.
स.ब.
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