हमारे बीच ये कैसा चाकू?
कोई कुछ बोलता क्यों नहीं?
बाजार में चमकती बिजली सी कीमत
कोई सच्चाई में तोलता क्यों नहीं?
कभी धर्म पर खंजर, शर्म पर आरी,
कोई गैरत टटोलता क्यों नहीं?
रिश्तों में सनक, हवस और तुनक
कोई मरहम ढोलता क्यों नहीं?
भ्रष्टाचार का फैशन, राजनीति में पैशन
कोई मुद्दा बनाकर डोलता क्यों नहीं?
हर आंच पर जांच, आदमी पांच
कोई सच बोलता क्यों नहीं?
लुटकर हर कोई बन रहा लुटेरा
लूट पर कोई खौलता क्यों नहीं?
क्या सब बन गए घायल होकर चाकू
फिर, कोई कुछ बोलता क्यों नहीं?
हमारे बीच ये कैसा चाकू?
चाकू बोल रहा है....काटकर चक्क्क
क्या चाकू की खेती कर रहे हैं सब?
कोई कुछ बोलता क्यों नहीं?
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